फंस गया गुलशन - 1 BRIJESH PREM GOPINATH द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फंस गया गुलशन - 1

श्री गणेश आय नम:

फंस गया गुलशन-1

वो भागा जा रहा था...हाथ में एक छोटा सा बैग लिए...बार बार मुड़ कर देख लेता...कोई उसका पीछा तो नहीं कर रहा...बाज़ार से निकलते हुए जैसे ही वो गली में मुड़ा...सामने से आ रहे पुलिसवालों को देखकर ठिठक गया...उसने मोबाइल निकाला और कान पर लगाकर ये दिखाने की कोशिश करने लगा कि वो किसी से बात कर रहा है...पुलिस कॉन्स्टेबल उसे घूरते हुए निकल गए...उसने कदम तेज़ी से आगे बढ़ाए...और एक कोने में जाकर मोबाइल से एक नंबर डायल किया...वो बुदबुदाया,”अरे उठाती क्यों नहीं”...पूरी बेल गई...दूसरी तरफ फोन नहीं उठा...पसीने से तर उसने एक बार फिर नंबर डायल किया...दो घंटी के बाद ही फोन उठा तो वो चीखते हुए बोला...”कहां रहता है फोन...और कहां रहती हो तुम”...”अए हएए...सब्र नहीं होता क्या...मेरे से भी नहीं होता...तुम जल्दी आ जाओ न...कितने दिन हो गए तुमने कहानी नहीं सुनाई” दूसरी तरफ से शरारतभरा जवाब आया...”ओए तुझे कहानी की पड़ी है, यहां मेरी जान पर बनी है...सोनी मैं बहुत मुसीबत में फंस गया हूं यार, मेरी जान मुश्किल में है”...घबराई सी आवाज़ में गुलशन ने कहा तो दूसरी ओर से सवाल आया, ”क्यों ऐसा क्या हो गया...पिछली बार तो तुम ठीक ठाक गए थे”...”हां...लेकिन पिछले दो दिनों में ही कुछ ऐसा हुआ है...देखो मैं तुमको फोन पर ज़्यादा कुछ नहीं बता सकता...मैं कोशिश करुंगा किसी तरह वहां आने की लेकिन हमें वहां से भी निकलना होगा”...गुलशन ने जल्दी से बात पूरी की,”अरे क्या किया है तुमने...चोरी की है...”नहीं”...डाका डाला है...”नहीं”...खून किया है...”अरे नहीं...मैंने कुछ नहीं किया है”गुलशन लगभग चीखता हुआ बोला...अभी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि सामने एक वैन रुकी...उसमें से चार हट्टे कट्टे जवान उतरे...देखने में ही बदमाश नज़र आ रहे थे...उन्हें देखते ही गुलशन को कुछ शक हुआ और वो दूसरी तरफ तेज़ी से चलने लगा, पीछे से किसी ने आवाज़ दी...”ओए रुक...ओ ओए रुकता क्यों नहीं”...चलते चलते वो दौड़ने लगा...उसने खतरा महसूस कर लिया था...वो दौड़ने लगा तो वो चारों भी उसके पीछे भागने लगे...वो चारों रुके...उनमें से एक जो उनका बॉस टाइप लग रहा था उसने बाकी तीन को इन्स्ट्रक्शन दिया...”तुम दोनों उस रास्ते से जाओ हम इधर से जाते हैं...देखना चकमा न दे जाए...इसे हर हाल में लेकर जाना है...बॉस की जान है इसमें”...वो बस भागता जा रहा था...उसने जैसे ही कट मारा, सामने से दो मुशटंडे नज़र आए...वो पीछे मुड़ा तो दो और नज़र आए...वो घिर चुका था...उसने आंख बंद कर भगवान को याद करना शुरु किया..”पकड़ पकड़..की आवाज़ उसके कानों में पड़ी...पकड़ साले को...देख देख उधर जा रहा है...पकड़ लिया क्या”...चारों ने एक चादर निकाली और किनारे किसी के ऊपर डाल दी...कूं कूं की आवाज़ सुनकर गुलशन ने डरते डरते पहले एक फिर दूसरी आंख खोली तो देखा चारों मुशटंडे एक छोटे से कुत्ते को पकड़ कर ले जा रहे हैं...उसने राहत की सांस ली...अभी वो खुद को संभाल रहा था कि एक मुशटंडा आया और उसने कहा, “THANKS...भाईसाहब आपके पीछे ही ये दौड़ रहा था...अच्छा हुआ आप रुक गए तो ये भी रुक गया...और हमने इसे पकड़ लिया...पूरा दिन साले ने परेशान कर दिया...मालिक ने भी अल्टीमेटम दे दिया था कि अगर खाली हाथ आए तो सज़ा और इस गंडूरे को लेकर आए तो मज़ा”...दूसरे मुशटंडे ने बात आगे बढ़ाई, “लेकिन समझ नहीं आया कि ये आपके पीछे पीछे क्यों जा रहा था”...”आपको मालूम नहीं, ये मेरे पिछले जनम का मामा है...अरे मुझे क्या मालूम ये मेरे पीछे क्यों भाग रहा था” झुंझलाते हुए गुलशन ने जवाब दिया...तभी कुत्ते को गोद में दबाए तीसरा मुशटंडा बोला, ”लेकिन भाईजान ये भी नहीं समझ आया कि आप बेतहाशा क्यों भागे जा रहे थे”...”ओलंपिक में मेडल जीतना है न इसलिए प्रैक्टिस कर रहा था...आपका काम हो गया न...प्लीज़”, गुलशन ने चिढ़ते हुए उन्हें जाने का इशारा किया तो तीनों हंसते हुए अपनी वैन की ओर बढ़ गए...जाते जाते फिर एक बोला...”अरे THANK YOU ONCE AGAIN जी...उनके बार बार थैंक्स कहने से ही समझ आ रहा था कि अगर बॉक्सर नस्ल के इस कुत्ते को लेकर वो नहीं जाते तो उनका क्या हश्र होता.

चारों मुशटंडों के जाते ही गुलशन ने राहत की सांस ली...शाम का वक्त हो चला था...जनवरी का महीना था इसलिए ठंड बढ़ गई थी, गली सन्नाटी हो चुकी थी...इक्का दुक्का लोग ही नज़र आ रहे थे...गुलशन ने मोबाइल निकाला और फोन लगाया...दूसरी ओर फोन उठते ही बोला, ”यार वीरा...मैं बड़ी मुसीबत में फंस गया हूं”...दूसरी ओर से सवाल हुआ, ”क्या हो गया गुलशन तू इतना घबराया हुआ क्यों है”... “यार मेरी जान खतरे में है, मेरे पीछे बदमाश लगे हैं”,क्या, तेरे पीछे बदमाश क्यों”, फोन पर मैं तुझे नहीं बता सकता”, “अच्छा अच्छा तू परेशान मत हो...ये बता इस समय तू है कहां”वीरा ने सवाल किया...”कृष्णानगर”, गुलशन का जवाब आते ही वीरा ने सलाह दी...”एक काम कर, तू 100 नंबर पर फोन कर, मैं भी वहां पहुंचता हूं, वैसे कुछ तो बता हुआ क्या ”...”यार कंपनी”...अभी उसने इतना ही कहा था कि अचानक सामने से एक मोटरसायकिल आई जिस पर दो लोग सवार थे...दोनों ने हेल्मेट पहन रखा था...गुलशन को शक हुआ, जैसे ही बाइक उसके बगल से निकली पीछे बैठे आदमी ने गुलशन पर तलवार से हमला किया, खुद को बचाने के लिए गुलशन दूसरी तरफ झुक गया...वार गले की जगह उसके कंधे पर लगा...गुलशन की चीख निकल गई...बचने के लिए वो भागा...”बाइक घुमा जल्दी...जाने न पाए”...बाइक घूमी...तभी सामने से आ रहे एक बूढ़े से टकरा गई...”अबे बुड्ढे घर में जगह नहीं है जो मरने के लिए सड़क पर आ गया है” बाइक चला रहे युवक ने बुड्ढे को कोसा...इस बीच गुलशन को मौका मिल गया और वो तेज़ी से भाग निकला...उसके कंधे से खून बह रहा था, सफेद शर्ट खून से लाल हुई जा रही थी...लेकिन जान बचाने के लिए वो जितनी तेज़ी से भाग सकता था भाग रहा था...गलियों में होता हुआ गुलशन थोड़ा चौड़ी सड़क पर आ गया था, बाइक उसके पीछे लगी थी, अंधेरा और संकरी गली होने के कारण बाइक तेज़ रफ़्तार नहीं चल पा रही थी लेकिन मेन रोड पर आते ही बाइक चालक ने रफ्तार बढ़ाते हुए पीछे बैठे साथी को आदेश दिया, “इस बार गलती मत करना, गर्दन उड़ा देना साले की”...बाइक गुलशन के बिल्कुल पास पहुंची ही थी की सामने से पुलिस की जीप आते देख बाइकसवार खतरा भांपते हुए बिना रुके तेज़ी से निकल गए...खून वाले हाथ से गुलशन ने किसी तरह बाइकसवारों की तरफ इशारा किया...उसके कानों में आवाज़ पड़ी...”पकड़ो सालों को”...गुलशन की आंख बंद हो रही थी...उसे कभी बांहे फैलाए सोनी नज़र आती, तो कभी ऑफिस की घंटियां बजती...तो कभी बूढ़े मां बाप का चेहरा नज़र आ रहा था...तो कभी माइक, रौनक, ग्लोरिया की सूरत...तस्वीरें धुंधली होती जा रही थीं...धीरे धीरे गुलशन की आंखें पूरी तरह बंद हो गईं...वो बेहोश हो चुका था...

हॉस्पिटल के इमरजेंसी वार्ड में गुलशन को एडमिट कराने के बाद रूम के बाहर इंस्पेक्टर नरेंद्र पाल सिंह, कॉन्स्टेबल हथियार सिंह, शमशेर और वीर सिंह इंतज़ार कर रहे थे, तभी डॉक्टर ने बाहर आकर जानकारी दी, “घाव गहरा है लेकिन गनीमत है हड्डियों तक नहीं पहुंचा, टांके लगा दिए हैं, लेकिन होश आने में वक्त लगेगा”, “तो क्या डॉक्टर बयान हम आज नहीं ले पाएंगे”, इंस्पेक्टर नरेंद्र पाल सिंह ने मायूस होते हुए सवाल किया तो डॉक्टर ने कड़ाई से कहा, “नहीं, कम से कम 24 घंटे तक नहीं”, ओह, इंस्पेक्टर नरेंद्र पाल ने सिर हिलाया, “Okay डॉक्टर, मेरे 2 कॉन्स्टेबल यहीं पहरा देंगे.” वीर सिंह भी वहीं बेंच पर बैठ गया.

रात के 8 बज चुके थे, इंस्पेक्टर नरेंद्र पाल सिंह जीप में बैठने ही जा रहा था, फिर न जाने क्या सोचकर वापस गुलशन के रूम की तरफ बढ़ा, शायद वो इस केस को जल्द सॉल्व करना चाहता था. इंस्पेक्टर नरेंद्र पाल सिंह कॉरीडोर से होता हुआ वीर सिंह के पास पहुंचा,

“किसने किया होगा इस पर हमला”...सिर झुकाए बैठा वीर सिंह अचानक आई आवाज़ से चौंक गया, सिर उठाया तो देखा इंस्पेक्टर वीर सिंह उसके सामने खड़ा सवाल कर रहा है...”मालूम नहीं साहब...हमले से पहले उसने फोन किया था...कुछ ऑफिस ऑफिस कह रहा था...बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि हमला हो गया”...”हम्म”...इंस्पेक्टर ने गहरी सांस ली और वीर सिंह के पास ही बेंच पर बैठ गया...”काम कहां करता है”...इंस्पेक्टर ने सवाल किया, “ZAP INFOTECH” वीर सिंह का जवाब सुनते ही इंस्पेक्टर ने सिर हिलाया….”किसी से कोई झगड़ा वगैरह तो नहीं हुआ”...”नहीं साहबजी”, ये बंदा कभी किसी के साथ झगड़ ही नहीं सकता ”..वीर ने जल्दी से गुलशन का कैरेक्टर सर्टिफिकेट पेश किया तो इंस्पेक्टर गहरी सोच में पड़ते हुए बोला...”तो फिर क्या बात हो सकती है”....वो वीर की ओर मुड़ा और उसके बिल्कुल पास जाकर आंखों में आंखें डालकर बोला, “क्या जानते हो…अं...क्या नाम बताया, हां.. गुलशन...गुलशन के बारे में क्या जानते हो, क्या बता सकते हो हमें”, इंस्पेक्टर ने गहरी सांस लेते हुए पूछा, वीर सिंह की निगाहें छत की ओर चली गईं, आंखों के किनारे गीले हो गए थे...बड़ी मुश्किल से उसने बोलना शुरू किया.

TO BE CONT: